अनुभूति में
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भोले चेहरे
मैं
वसंत
शब्द |
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शब्द
कोरे काग़ज़ पर लिखते हुए
इन लकीरों से
शब्द
एकाएक द्वीप बन-बन कर
बह जाते हैं
काश!
उन्हें शरीर और आत्मा दे पाती
और फिर
वे बने रहते द्वीप
या धरती पुरी की पूरी जुड़ी हुई
कहते वही सत्य
जिनसे उनकी सर्जना हुई थी।
24 अगस्त 2007
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