मैं
जन्म लेते ही
गठबंधनों में बाँधा गया
'मैं" अकेला।
सब कुछ ढो कर
ले चलने के लिए
छोड़ दिया गया
'मैं" अकेला।
और मैं कि सब को
अपना बनाने की चाह में,
नई राह का प्रदर्शक बनने में,
न बोझ ही ढो सका, न ही उसे छोड़ सका।
आख़िर
थक कर झुका गुरु चरणों में,
'मैं" उतर गया कंधों से
हल्का हुआ भार।
24 फरवरी 2007 |