अनुभूति
में
आलोक शर्मा की
रचनाएँ-
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में-
अभिलाषा
तुम
नज़ारे यूँ चहकते हैं
सूनापन
क्षितिज के उस पार
कविताओं में-
आँसू
ढूँढता सहारा
तुमको अंतिम प्रणाम
मेरी चार पंक्तियाँ
लहर
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तुमको अंतिम प्रणाम
हे सूर्य! तुमको अंतिम प्रणाम
रक्त रंजित नभ के स्वामी
प्रतिबिंबित चंद्र की कांति तुमसे
आज डूब रहे जलधि में मौन
क्या छोड़ अकेला हमें अरण्य में
रह पाओगे तुम सुख-शांति से
सत्य का यह ह्रास मूक देखते
नभमंडल के ये अनगिनत तारे
देखता मैं भी तुमको समुद्र क्षितिज से
जहाँ वीणा के तार छेड़ती सिंधु-लहरें
तुम्हारी ही वंदना के स्वरों में
करता तुमको अंतिम प्रणाम
२२ सितंबर २००८
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