अनुभूति
में
आलोक शर्मा की
रचनाएँ-
नई रचनाओं
में-
अभिलाषा
तुम
नज़ारे यूँ चहकते हैं
सूनापन
क्षितिज के उस पार
कविताओं में-
आँसू
ढूँढता सहारा
तुमको अंतिम प्रणाम
मेरी चार पंक्तियाँ
लहर
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नज़ारे यूँ चहकते हैं
नज़ारे यूँ चहकते हैं
कि जो मदहोश करते हैं
कि कल तुम आओगे ये
सोचकर मैं जी लेता हूँ
न एक पल मैं भी सोया था
कि भौंरा बन, भटकता था
कभी कलियों के पीछे तो
कभी खुशबू के पीछे था
कि मेरा मन मयूरी कि तरह से
नाच उठता है
जाने ये तबीयत कौन सा
अब रंग लाएगी
अरे दीवानगी के दर्द को
वो लोग कहाँ जाने
जो फूल हैं खिलते
सुगंध अपनी कहाँ जाने
पल-पल मैं कहता हूँ ,
जवानों मस्त हो जाओ
दो-चार दिन की, जिंदगानी
फिर अँधेरा क्यों?
१३ सितंबर २०१०
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