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मेरी चार पंक्तियाँ

उस स्वप्न की ओर
जहाँ शीतल जल के दर्पण में
मेघों का आलिंगन हो
बहती धारा की कल-कल ध्वनि में
माधुर्यता का पदार्पण हो
प्रकृति के प्रेम रस में
सुधा संगीत का गूँज हो
वायु का लतिका पर स्पर्श
मृदुल झंकार कर रहा हो
घटाओं का यों आना भी
सहस्त्रों मृदंगों का नाद करे
आकाश की बूँद गिर कर
अमृत को भी गौण कर दे
ऐसे वातावरण में मेरा विराग
चित्त चकोर को ढूँढें
मुझे ऐ मेरे मन तू ले चल
उस स्वप्न की ओर।

२२ सितंबर २००८

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