अनुभूति
में
आलोक शर्मा की
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अभिलाषा
तुम
नज़ारे यूँ चहकते हैं
सूनापन
क्षितिज के उस पार
कविताओं में-
आँसू
ढूँढता सहारा
तुमको अंतिम प्रणाम
मेरी चार पंक्तियाँ
लहर
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सूनापन
हिमालय के पृष्ठ भूमि पर
गिरता हिम मध्यम- मध्यम
व्याकुल, व्यथित, संतप्त मन
देखता ह्रदय अविचल मौन
ऊपर मेघ शोक वक्ष से
स्पर्श करता हिम-चरण
जड़ चेतन का महा-मिलन
देखता हृदय अविचल मौन
पवन शून्य-संताप निमग्न
श्वेत व्योम, श्वेत भूमि
श्वेत वारिधि, श्वेत मयंक
प्रकृति का अद्भुत प्रपंच
करता मन विचार अभी
कहाँ खो गयी बोध मेरी
असमंजस स्थिति क्यों हुयी
वंदना, वेदना क्यों बनी
जब शून्य से सृष्टि उत्पन्न हुई
प्रकट हुई पृथ्वी सारी
तब क्यों नहीं शून्य ह्रदय से
निकली नहीं वेदना सारी
विच्छेदन करता पल-पल
अनजान भय जीवन समतल
सन्नाटे का बड़ता चरण
आ क्यों रुका मन आँगन?
क्या यही सूनापन है
जो जीवन पर्यन्त रहेगा
न चाहते हुए भी
क्या मेरे संग चलेगा?
१३ सितंबर २०१०
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