अनुभूति
में
आलोक शर्मा की
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में-
अभिलाषा
तुम
नज़ारे यूँ चहकते हैं
सूनापन
क्षितिज के उस पार
कविताओं में-
आँसू
ढूँढता सहारा
तुमको अंतिम प्रणाम
मेरी चार पंक्तियाँ
लहर
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क्षितिज के उस पार
वह बुझता दीपक नहीं
कल आने वाले
एक सहस्त्र तरुण दीपकों का जन्मदाता है
शीत ऋतु के रोष से
वृक्ष से गिरती हुई एक पंखुड़ी नहीं
यह कल के बसंत का द्योतक है
जीवन की इस ढलती आयु को मत देखो
यह कल आनेवाले
नवजीवन का आरम्भ बिंदु है
अंधकार के क्षितिज के उस पार
जो लालिमा लिए सूर्य निकल रहा है
उसको प्रणाम करो
१३ सितंबर २०१०
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