अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में आलोक शर्मा की
रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अभिलाषा
तुम
नज़ारे यूँ चहकते हैं

सूनापन
क्षितिज के उस पार

कविताओं में-
आँसू
ढूँढता सहारा
तुमको अंतिम प्रणाम
मेरी चार पंक्तियाँ
लहर

 

लहर

लहराते सागर के आँगन में
झूमता सावन का यह मीत
दक्षिण के क्षितिज से उठते
तरंगों से निकलता संगीत।

चट्टानों से टकराते
उठते-गिरते, फिर उठकर खो जाते
कभी मुझको खींचते तो कभी धक्के दे जाते
कर रहा कोई आज हलचल।

लहरों का यों गर्जना कर आना
आकर स्पर्श करना और फिर चले जाना
कभी भयाक्रांत छवि दिखलाना तो कभी
हारे सैनिक की भाँति लौट जाना।

ऊपर भास्कर का मंद-मंद मुस्काना
और तभी चाँद का, शरमा कर यों चले जाना
कोमल ह्रदय में स्पंदन कर देता
कोई आलोक काव्य शृंखला का।

२२ सितंबर २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter