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अनुभूति में विश्वमोहन तिवारी की रचनाएँ —

छंदमुक्त में-
अट्टादहन
आज जब अचानक
आत्मलिप्त
एकलव्य
कंचनजंघा
बंधुआ मज़दूर
बेघर
लहरें

क्षणिकाओं में-
आस्था, पोपला, सुधी पाठक, खौफ, कार्गिल की जीत

संकलन में-
गाँव में अलाव- शरद की दोपहर
प्रेमगीत– जवाकुसुम
गुच्छे भर अमलतास– जेठ का पवन
                –ग्रीष्म की बयार

 

एकलव्य

युगों से
होते आ रहें हैं एकलव्य
कटवाए गये हैं
जिनके अँगूठे
इस युग में भी
कटवाए जाएँगे अँगूठे
किंतु उन शोषितों का नाम होगा
अर्जुन

क्या यह है अनिवार्य
कि कोई न कोई बने एकलव्य!

युगों से होते आ रहे हैं कर्ण
नहीं दिया गया है जिन्हें वीरोचित सम्मान
इस युग में किंतु
उन शापितों का नाम होगा
अर्जुन

क्या यह है अनिवार्य
इस जनतंत्र में भी
कि बींधा जाए बाणों से
कर्ण का हृदय

पट नहीं सकती
मानवों के बीच की खाई
अँगूठों से
चाहे वे एकलव्यों के हों
या अर्जुनों के
भर नहीं सकती वह खाई
पाटने से
कर्णों या अर्जुनों की लाशें

किंतु पाट सकता है वह खाई
एक दुबला पतला हड्डी का ढाँचा
लपेटे लँगोटी
लिये लुकाठी
और प्रेम से धड़कता हृदय

२० जनवरी २००२

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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