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अनुभूति में विश्वमोहन तिवारी की रचनाएँ —

छंदमुक्त में-
अट्टादहन
आज जब अचानक
आत्मलिप्त
एकलव्य
कंचनजंघा
बंधुआ मज़दूर
बेघर
लहरें

क्षणिकाओं में-
आस्था, पोपला, सुधी पाठक, खौफ, कार्गिल की जीत

संकलन में-
गाँव में अलाव- शरद की दोपहर
प्रेमगीत– जवाकुसुम
गुच्छे भर अमलतास– जेठ का पवन
                –ग्रीष्म की बयार

 

 

आज जब अचानक

तुम अपने प्रेम में थीं निस्सीम
दिव्य आकाश!
मैं अपनी लम्बी बाहों में
भर लेना चाहता था वह आकाश
पैर रखे हुए भूमि पर

मुझे मिली थी बंजर सी जमीन
हवाएँ भी ठहरी ठहरी
किरणें छिपी छिपी
फिर भी बोए थे मैंने
फूलों के बीज
और फिर खिल रहे थे
प्यारे प्यारे सुगंधित फूल

मैंने पाया कि मेरी बाहें लम्बी
पड़ती रहीं छोटी
क्योंकि निस्सीम था तुम्हारा आकाश

बादलों की गड़गड़ाहट
करती रही अशांत
नहीं नहीं, वह मेरा भ्रम था
क्योंकि वर्षा करता रहा
ज्योतिर्मय किरणों की
तुम्हारा निस्सीम आकाश
और मेरा सारा अस्तित्व
उस अँजुरि भर प्रकाश से ही
होता रहा हिरण्मय

आज अब अचानक बरसों बाद
झांका आकाश
तो जैसे नहा गया था
किरणों की उस बरसात में

और जब कल फिर घिर आएँगे बादल
मुझे मालूम है
कि किरणें झरती रहेंगी
वैसे ही जैसे सूरज डूबने के बाद
सांझ रहती है जगमगाती

२० जनवरी २००२

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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