छाप का छाप से
आश्वस्त अपनी अस्मिता में
होना था परम
तेजवंत अद्वितीय अनुपम
वही आदमी अब स्वयं आप नहीं
एक छाप रह गया है
अब किसे वास्ता
मुझसे या आप से
एक भयानक छापामार युद्ध है
अब केवल छाप का छाप से
यह क्या हो गया है
इस युद्ध में आदमी समूचा खो गया है
काश कि आदमी आदमी न होता
एक फूल झरना हिरन पहाड़ या गधा होता
तो कितना मौलिक उन्मुक्त
प्रगाढ़ और सधा होता
अब अंतिम युद्ध करना ही होगा
आदमी को आदमी
सिद्ध करना ही होगा।
२० जुलाई २००९ |