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अनुभूति में विद्यासागर जोशी की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अपना रंग अनूप
उसी के जन्म से

खींचचान
छाप का छाप से

जानना
दिखती है वही
नेता जनता और नेता
प्रश्नपत्र कठिन है

 

छाप का छाप से

आश्वस्त अपनी अस्मिता में
होना था परम
तेजवंत अद्वितीय अनुपम
वही आदमी अब स्वयं आप नहीं
एक छाप रह गया है
अब किसे वास्ता
मुझसे या आप से
एक भयानक छापामार युद्ध है
अब केवल छाप का छाप से
यह क्या हो गया है
इस युद्ध में आदमी समूचा खो गया है
काश कि आदमी आदमी न होता
एक फूल झरना हिरन पहाड़ या गधा होता
तो कितना मौलिक उन्मुक्त
प्रगाढ़ और सधा होता
अब अंतिम युद्ध करना ही होगा
आदमी को आदमी
सिद्ध करना ही होगा।

२० जुलाई २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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