अपना रंग अनूप
अपनी धडक़न
अपना जीवन
अपने सूरज का ताप
अपने आँगन की धूप
अपना रंग अनूप
जितने रंग जगत में
जितनी धड़कन जितना जीवन
स्वागत में अपनी फैली बाहों में
भर-भर कर हम देखे परखे अपनाए
अपने आँगन में इन्द्र धनुष उतरे इतराए
घिर-घिर आए मेघ जब-जब काळे
छँटे छाटे हमने किए उजाळे
मानवता का रेशा-रेशा रंर्ग रंग निखर आया
जन-जन सकळ जगत को भाया
साँस साँस में अब भी चिंतन
बूँद बूँद करते हम सिंचन
प्रमुदित हो क्यारी क्यारी
फैले फूले महके मोहे
धरती यह फुलवारी।
२० जुलाई २००९ |