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गर्म हैं अख़बार
दिल में हमारे

 

 

 


वार
पीठ पीछे का वार
तोड़ देता है
परिवार



जीवन मंथन
मुमकिन है गोते लगाना
मुश्किल है सीप से मोती लाना
ये जीवन मंथन है



दौर
जो दौर गुजर रहा है
हमारे आसपास से
डरने लगे हैं
अपने अहसास से



भ्रष्टाचार
कलियुग में भ्रष्टाचार
खड़ा है बाँह फैलाए
जीवन का यह चक्र
फिर भी घूमता जाए



शून्य
धीरे धीरे बारी बारी
रूठे मुझसे सब
शून्य को निहारता हूँ
रोता नहीं हूँ अब


कोशिश
एक टुकड़ा धूप ही सही
कभी तो मिलेगी
कोशिश करना ही जिंदगी है


कदम
आगे कुआँ पीछे खाई है
यहाँ किसने निभाई है
संभल कर रखो कदम
इसी में भलाई है



हिम्मत
काले घुप्प अंधेरे में
रौशनी की एक नन्हीं लकीर
देती है अँधियारा चीर
हिम्मत से



ग़ज़ल
आहों वेदनाओं से जब
नयन हुए सजल
कभी गीत कभी मुखड़ा
कभी बन गई गजल


१०
सत्कर्म
जिंदगी एक फूल है
जो महकती है
चहकती है
अपने सत्कर्मों से

१६ अगस्त २०१०

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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