अनुभूति में
सुकीर्ति गुप्ता की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
एक त्रासदी
चाहत
प्रेम
फुर्सत नहीं
बौराए से दिन
संबंध
स्त्री का एक गीत |
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फुर्सत नहीं
किसे फुर्सत है सुनने की
पूरे शहर का बोझ-तनाव
लेकर आया है वह
एक-एक डिब्बा खोलता है
एक में समस्या है नौकरी की
खुशामद की कमी में
वह वहीं रह गया
गली के शब्द कोश से
भारी है वह
बजाने के खरड्-खरड्
दूसरे में परिवार की चिन्ता है
नौकरी है शहर में, घर नहीं
'पेइंग गेस्ट' है वह
महीनों पत्नी बिना जीवन
व्यक्ति को खिजा कर
रीता कर देता है
रह जाती शब्दों की गरमाहट
तीसरे में महँगाई अर्थ बोझ है
वह सब्जी-फलों के दाम गिनाता
बच्चों की माँग के लिए
खुद कपड़ों पर इस्त्री करता
दूध की जगह भीगे चने को
'प्रोटीनयुक्त' बताने में
घंटों गुजार देता
दूसरों की सुनने की फुर्सत नहीं
वह भी बोलना चाहता है
होठों से शब्द निकलते हैं
पर उसके शब्दों की टकराहट से
फिर-फिर लौट आते
यह कैसा समय है?
सब बोलते हैं सुनते नहीं
मंच पर कविता-पाठ, भाषण
बोले चले जाते
सुनने की फुर्सत नहीं
रह जाती जनता
जो सुनने की आदी है
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