अनुभूति में
सुकीर्ति गुप्ता की रचनाएँ- छंदमुक्त में-
एक त्रासदी
चाहत
प्रेम
फुर्सत नहीं
बौराए से दिन
संबंध
स्त्री का एक गीत
|
|
बौराए से दिन
राग-रंगे बड़े होते ये दिन
घरों में न समा पाते
खुली खिड़की दरवाजे से
ताक झाँक जाते
गोरी के अँगना में
अलसाई धूप पसरी है
चटख हरी पत्ती में
निबौली पीली निखरी है
दुपहरिया की जवानी
पसीना ले आती है
लाल-पीली चुनरी
वृक्षों पर झिलमिलाती है।
|