अनुभूति में
सत्येश भंडारी
की
रचनाएँ -
चुनाव कविताएँ-
कार और सरकार
प्याज और चुनाव
हास्य व्यंग्य में-
असली नकली दूध
इंटरनेट पर शादी
अँधेर नगरी और पर्यावरण
जंगल का चुनाव
पर्यावरण और कुर्सी
छंदमुक्त में-
अंधा बाँटे रेवड़ी
एक क्रांति का अंत
"गाँधी का गुजरात" या "गुजरात का
गाँधी"
संकलन में-
गाँव में अलाव-सर्द हवाओं के बीच
ज्योति पर्व-क्यों कि आज दिवाली है
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जंगल का चुनाव
जंगल में आजकल
एक अफवाह फैली हुई हैं कि
शेर शाकाहारी हो गया है,
क्योंकि जंगल में
चुनाव आने वाला है।
गलत है यह सब।
विरोधियों की चाल है
मुझे बदनाम करने की।
यदि शेर घास खायेगा तो
उसमें और गधे में
क्या फर्क रह जायेगा?
यदि शेर कंद मूल और
फल खायेगा तो
उसमें और बंदर में
क्या फर्क रह जायेगा?
मैं शेर हूँ और
शेर ही रहूँगा।
जी हाँ, यह सच है कि
मैं चुनाव में खड़ा हूँ।
चाहे तोड़ने के लिये ही
किये जाते हो वादे,
फिर भी मैं
एक वादा करता हूँ आपसे।
अगले पाँच वर्षों तक
हर उस जीव को नहीं खाऊँगा
जो मुझे वोट देकर
जंगल का राजा बनने में
मेरी मदद करेगा |