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सर्दियों की धूप
दबे पाँव
चढ़ कर दीवार
झाँक रही
बाहर-भीतर
शुरुआती सर्दियों की धूप
गुनगुन
उतर आयी
आँगन में,
देह साधती
खेल खेलती
नटों के संतुलन का
आँगन में खींची अलगनी पर
चिड़ियाँ कतार की कतार ,
हवा में
इठला रही हैं
फूलों के रंगत वाली
कितनी-कितनी तितलियाँ ,
चम्-चम् चमकती चांदी
कोई नदी
उतरा रही है
आँखों में
पड़ रही है चमक,
दूर
बस्ती से बाहर कहीं
घास के हरे-भरे मैदान में
या और भी दूर निकलती हुयी
रेल की पटरियों के किनार-किनारे
छायाओं की चित्रकारी करती
अकेली
भटक रही होगी कोई चित्रांगिनी
अपना कैनवास लिये
और अपने रंग
अपने साथ लिये ,
पेड-पत्तियों को छूती
दुलराती
हवाओं में तरंगित
कोई धुन
खिले-खिले सुनसान में ...
४ नवंबर २०१३
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