पंछियों का
चातुर्मास
सूखी खड़खड़ रातों में
सुनता
अपनी ही हड्डियों की आवाज़
बजता धूप में
गिनता दोपहरियों के दिन
दम साधे
पत्ता-पत्ता
दूर
सागर को छू कर
उधर से आ रही
पेड़ के बहुत करीब हुयी है
धीमी हवाओं की आहट
आसमान पर उपक रही हैं
चाँदी की मस्तूलों वाली
नौकाओं की छायाएँ
लहर-लहर
लौट रहे हैं
पिछले मौसम के गए
देशाटन को
सागर पार से
बाँध कर कतार-दर-कतार
सफ़ेद पंखों वाले पंछी
चातुर्मास के लिये
अपने जाने-पहिचाने
पुराने ठिकाने...
२३ जुलाई २०१२
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