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धूप की नदी

एक नदी
धूप की
रहे कहीं भी
रात में
सुबह अपनी होती है
फिर भी
धूप की नदी,

रास्ता नहीं भटकती
धूप की नदी,

पर्वत पार कर के
कभी पगडंडियों से होकर
आती है
मिलती है
सरोवर किनारे
ठहरी हुयी
दोपहर में
धूप की नदी ,

ना पानी
ना रेत
एक छाया धूप की नदी,

मुट्ठी में पसीजता
कागज़ का एक टुकड़ा
चुपचाप
धूप की नदी,

धूप में
नदी में
किताब के पन्नों में
पनपती
कोई प्रेम कहानी ...

४ नवंबर २०१३

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