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सपने में उजाला
कोई सपना है
सपने में धूप
धूप में पर्वत,
पर्वत दरक रहा है
समाप्त हो रहा है
वृक्ष-वीथिकाओं का रहस्यमय संसार,
बाहर
खिल रहा है
एक पुष्प
भीतर
अन्धेरा घुप्प ,
लालटेन की टिमटिमाती लौ में
फैल रहा है सपना
सपने में उजाला
उजाले में मत्स्यकन्या ,
मत्स्यकन्या घुमा रही है
घुमा रही है
अपने साथ
खूब घने हरे-भरे
चक्करदार रास्तों में
बार-बार, बार-बार,
अब नहीं होता
दोपहर भर धूप में चलना
झेलना
रास्ते के तपते अनुभव
अब अकेले
झेले नहीं जाते
पहले की तरह,
जाने कहाँ-कहाँ नहीं
भटका में
यहाँ पहुँचने से पहले,
अब गुमने मत देना
यह पता
चाहे गुम जाऊं में,
ना पूछना मुझ से
मेरी अंतिम इच्छा
ना याचक मुझे बनने देना,
तुम्हारी केश-छाया में है
तृप्त होना मेरी तृष्णा
मेरी मुक्ति
तुम्हारी गोद में
मुझे सोने दो,
यहाँ फैला हुआ है उजाला
मेरे चारों ओर,
एक अँगीठी सुलग रही है
आँच दे रही है
एक सपना जाग रहा है,
सपने में उजाला
उजाले में मत्स्यकन्या,
मत्स्यकन्या बुला रही है
अपने पास,
अपने साथ
घुमा रही है
खूब घने, हरे-भरे
चक्करदार रास्तों में
बार-बार, बार-बार ...
२३ जुलाई २०१२
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