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अनुभूति में संतोष गोयल की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
आज का सच
गर्मी का मौसम
चक्रव्यूह
जादुई नगरी में
जो चाहा
बच्चों ने कहा था
मरना
मेरा वजूद
युद्ध
साँस लेता इंसान

क्षणिकाओं में
फैसला
प्यास

संकलन में
गुच्छे भर अमलतास- पतझर

  जो चाहा

नहीं चाहे थे
बहुत से सवेरे
बहुत- सी इठलाती चाँदनी
ढेर- से उगते बासन्ती फूल
गहराती लम्बे- नुकीले सुरू के पेड़ों की कतार
लम्बा- चौड़ा असीम आकाश
सुनहरे लाल- पीले
सोनजुही गुलमोहर या रात की रानी के फूल
मुस्कराता मौसम
खिलखिलाती धूप और सूरज की रौशनी
इतना सब तो नहीं चाहा था मैंने।
पर-
एक छोटी- सी ज़िन्दगी का
एक पल का संगीत
मुट्टी में बँध जाये जितना आकाश
घर के बाहर के आँगन के
गमले में खिलता एक सुनहला सपन फूल
सूर्यास्त के वक्त की
लाल चाँदनी- सी रौशनी का एक टुकड़ा
बस इतना ही तो चाहा था मैंने।
लेकिन-
बेदम शामें
दम तोड़ती सर्द हवाएँ
चिलचिलाती जलाती गर्म लपटें
सूखे पीले- झरे पत्तों का ढेर
गमगीन धुँधलका
साँय- साँय करता सन्नाटा ही क्यों मिला है मुझे?
ऐसा लगता है -
या तो मेरी चाह एक गल़त सवाल थी
या फिर-
मुझे जो मिला वह गल़त जवाब था।
 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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