रूप तुम्हारा
रूप तुम्हारा जैसे होली।
जीवन के रंगों की टोली।
तुम दाता का वरदहस्त हो,
मैं फकीर की खाली झोली।
बिकने को तैयार खड़ा हूँ,
खोलो तो दिल खोल के बोली।
कुदरत का वरदान हो तुम तो,
मैं मानो किस्मत की ठिठोली।
बच्चे की मुस्कान हो जैसे
हो उतनी पावन और भोली।
१ मार्च २००६
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