मुझपे अगर नज़र
उसकी मुझपे अगर नज़र होती।
अपनी उसको भी कुछ ख़बर होती।
मैं क्यों दर-दर भटकता राहों
में,
चार दीवारें भी जो घर होतीं।
गर अंधेरों से इश्क ना करता,
मेरी किस्मत में भी सहर होती।
छाले पाँवों के मेरे कहते हैं,
काश! फूलों भरी डगर होती।
चंद अरमान अब भी बाकी है
काश कि बाकी कुछ उमर होती।
अपने बचपन को जो बचा पाते,
ज़िंदगी गम़ से बेख़बर होती।
१६ अक्तूबर २००५
|