किस्मत ने
किस्मत ने फिर मारा चाँटा।
क्यों तूने अपना गम बाँटा।
गम और आँसू अपना नफ़ा है,
बाकी सब जीवन का घाटा।
बनी नहीं कभी अपनी रोटी,
गीला रहा सदा अपना आटा।
किस पर सारा दोष लगाते,
खुद को मारा, खुद को डाँटा।
बाकी फिर भी रहा फ़ासला,
अंतराल को कितना पाटा।
१६ अक्तूबर २००५
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