अनुभूति में पंखुरी
सिन्हा
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साल्वाडोर दाली और वायरलेस युद्ध
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अनहद
आगंतुक
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एफ आई आर दायर करो
हमारी तकलीफों की रिपोर्ट
संकलन में-
गंगा-
गंगा छलावा |
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साल्वाडोर
दाली और वायरलेस युद्ध
थोड़ा सा भी रूमानी
या खुश हो लेने पर
एक रूमानी सा यंत्र था टेलीफोन
खुशमिजाज़ सा
लेकिन ह्रदय के किसी मरीज़ की तरह
जिसके हाथ पाँव बँधे हो
लाइफ सपोर्टिंग यंत्रों के तारों से
और चिप्पियाँ चिपकी हों
शरीर पर यहाँ वहाँ
छाती पर भी
ठीक हृदय के इर्द गिर्द
फ़ोन यानी सेल फ़ोन के अदृश्य तार
साल्वाडोर दाली की तस्वीरों की खामोश चीख की तरह
दबाएँ हों ढ़ेर सारी आवाज़ें गर्दन में
आपकी मेरी गर्दनों में
किसी की कम
किसी की ज़्यादा
और घड़ियाँ पिघल नहीं रही हों
घड़ियाँ और मुस्तैदी से बँध गयी हों
उनमें समय के अतिरिक्त सारा जादू
सारा तमाशा
सारा मजमा
फ़िल्मी गीत तक बँध गए हों
आइ पॉड, आइ पैड
के महीन मसृण तार
कसकर लिपटे हों
हर कहीं इर्द गिर्द
लटके हों हवा में
एक घना सा जाल हो
जाने किन उपकरणों के तारों का
जबकि शब्द हों ज़माने में वायरलेस
वाइ फाई
जिसका कनेक्शन लिया जा सकता हो
सरकारी या निजी कंपनियों से
जिनमे से कुछ मूलतः विदेशी भी हैं
और जिनके साथ हमारे कॉन्ट्रैक्ट
एक दिन पता चलता है
मूलतः घाटे के सौदे हैं
दबाव की शतों पर
और इस तरह की तमाम खबरें
आती रहती हैं
इन्हीं किस्मों के पर्दों पर
इन्हीं तारों के जरिये
छपे हुए अखबार के कागज़ पर भी
दिखाई देती हों ये खबरें
और बाकी के ढेर सारे हिसाब किताब, जोड़ घटाव
खुद तो उच्चारित करते होते हैं
लगातार इर्द गिर्द
कइयों को ज़ोर से बोलने की अनुमति नहीं होती
बस एक तंत्र हो अजब खुफिया बातों का
और भाषा घोर रहस्यवादी...
१ दिसंबर
२०१५ |