अनुभूति में पंखुरी
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संकलन में-
गंगा-
गंगा छलावा |
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एनीमेशन
अजब सपना था
बिलकुल हकीकत जैसा
मेरा हर वक्त
बेवक्त ही बजने वाला फ़ोन
लगातार बज रहा था बेवक़्त
यानी नज़र आये इस तरह बेवक्त
जैसे खाने को छूते ही
जैसे साबुन हाथ पर लगाते ही
जैसे चेहरे पर लेप लगाते ही
लगातार दौड़ा रहा था फ़ोन
और इस तरह बज रहा था
जैसे किसी घर का सिक्योरिटी अलार्म
लेकिन निकल कर जाया नहीं जा सकता था कहीं और
कहाँ चला जाए कोई अपना घर छोड़कर
और क्यों छोड़ दे कोई अपना घर
क्या ये विस्थापन की ही कोई नयी राजनीति है?
या फिर नए किस्म की कोई नयी घुसपैठ?
ये सवाल कोई ज़ोर ज़ोर से पूछ रहा था
सपने में?
और फ़ोन भी किसी दैत्य की तरह बज रहा था
सपने में
पहले नहाते
फिर खाते, फिर खाने के बीच
फिर उसमे एनीमेशन जैसी कोई हरकत हुई
गतिविधि या क्रिया
वह गेंद की तरह उछलने लगा
अंग्रेजी का वह शब्द वाइब्रेशन
गेंद के उछलने की तीव्र गति और क्रिया में
परिणत हो गया
वह बिस्तर से उछलकर मेरे करीब आने लगा
उसके दांत उगने लगे
मेरे नहाते वक़्त बजते रहने की सारी ऊर्जा से लैस
वह उचक उचक कर
मेरी थाली तक पहुँचने लगा
मेरी उँगलिओं में अपने दांत गड़ाने लगा
मेरी कलाई में भी
और ठीक जब उसके दांत
मेरे चमड़े के भीतर धँस रहे थे
शायद मेरे अपने खून की गर्माहट से
या दर्द की आहट से
मेरी नींद खुल गयी
और मेरा फ़ोन
मेरा सेल फ़ोन
केवल मुझसे कुछ दूरी पर
किसी वहशी मशीन की तरह बज रहा था
जिसके कल पुर्जे अगर बिगड़ जाएँ
तो बहुत कुछ को भस्म कर सकते थे
कर रहे थे
लेकिन उसे उठाकर
फेंक नहीं दिया जा सकता था कुएँ में
नदी, झील या समुद्र में
वह बातें करवा ही लेता था
खुद से, खुद पर
कभी, कभी लगातार और केवल गलत समय बजकर...
१ दिसंबर २०१५ |