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गंगा छलावा

 


 
गंगा में अब बाढ़ नहीं आती
अब बहती नहीं गंगा वैसे
गंगा उलीचती नहीं अब
पाट अपने
डुबोती नहीं सीढियाँ
भिगोती नहीं हमारे अंतर
गंगा अब असीसती कम है।

कम हुआ दुलार उसका
कम हुआ पुचकार उसका
कम हुआ शृंगार उसका
गंगा में अब पहले वाली बात नहीं रही
अब वैसा नहीं रहा गंगा स्नान।

दिए कम हुए धारा पर उसकी
मध्यम हुईं लहरें भी उसकी
कम आलोड़ित हुआ वेग उसका
कम शीतल पानी
अब कम लोग ले जाते हैं
अपने घर गंगा जल।

कुछ कम हुई दैवी हुई शक्ति उसकी
कुछ कम हुई भक्ति भी
कम जुटे उपासक
कुछ दुर्जन भी आये
पानी गँदला हुआ
गंगा अब भटकाव है
गंगा उलझन
गंगा राजनीति बनी
गंगा आन्दोलन।

कम हुआ बुलावा उसका
उतरने पर नदी में गहरे
स्पर्श नहीं, केवल छलावा हुआ
लगाने पर डुबकी
मिली नहीं भागीरथी
प्यासी रही आँखें
माँगती आशीष उसका
वार्तालाप रही गंगा
गंगा प्रार्थना।

-पंखुरी सिन्हा
१७ जून २०१३

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