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अनुभूति में मथुरा कलौनी की रचनाएँ

कविताओं में—
आतंकवादी की माशूका
एक पल
कबतक
तुम्‍हारे नयन
नया युग
पुरुष का संदेश नारी के नाम
रस्में
वे दिन


 

 

 

तुम्‍हारे नयन

तुम्‍हारी पलकों का यह उत्‍थान पतन
श्‍याम स्‍वच्‍छ नयनों में उदासी की झलकन
झुठला रहे हैं तुम्‍हारा कथन
कि‍ मैं ही हूँ केंद्र तुम्‍हारे स्‍नेह का

प्रयत्‍नशील तुम रखने को गोपन
अपना अशांत और उथल-पुथल मन
करते हैं किं‍तु प्रयास वि‍फल नयन
बिंबि‍त है इनमें चि‍त्र अतीत का

जब होता इन रास्‍तों में उसका चलन
होती हो तुम वि‍चलि‍त औ' अनमन
और होते हैं ये श्‍याम स्‍वच्‍छ नयन
लिए अंकि‍त एक भाव वेदना का

कर चुकी थीं तुम अतीत का वि‍सरन
फिर उस ओर क्‍यों तकते लोचन
वि‍दीर्ण है मेरा अंत:करण
कैसा है यह खेल मोह का

16 अप्रैल 2007

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