अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मथुरा कलौनी की रचनाएँ

कविताओं में—
आतंकवादी की माशूका
एक पल
कबतक
तुम्‍हारे नयन
नया युग
पुरुष का संदेश नारी के नाम
रस्में
वे दिन


 

 

कब तक. . .

यथार्थ से दूर
आदर्श से परे
थोथे सिद्धांतों के
नारे लगाते रहे।
गंदगी उलीचने के बहाने
गंदगी में जीते रहे।

न समेट पाए साहस इतना
अपनी निरर्थकता से
दो चार हो सकें।
मुख आइने में देखते
अपने से आँखें चुराते रहे।

जिसकी भी लाठी रही
वह भैंस खोल कर ले गया।
चलता है चलता रहेगा
यह राष्ट्रगीत हम गाते रहे।

राम की अयोध्या
राम का मंदिर
राम का नाम हम भुनाते रहे।
राम जब भी आए
बनवास उनको हम देते रहे।

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter