एक पल
यह नि:शब्द रात यह स्वच्छ चाँदनी पेड़ों पर
यह झींगुर का बोलना यह मेंढक की टर्र-टर्र
शहर के कोलाहल से दूर इस गाँव में
क्या यह स्वर्ग उतरा है धरती पर
यह तारों भरा आसमान यह मधुर मंद बयार
हौले-हौले से उड़ते ये तुम्हारे केश अपार
यह चाँदनी कितनी रहस्यमय लगती है तुम पर
प्रिये टहरो, बैठ जाओ उस पत्थर पर
यह चंचल नयन तुम्हारे लिए एक मंद हास
कर रहे शरारत होंठ बोलने का है कुछ प्रयास
क्यों न भूलें भूत औ' भविष्यत हम
यही तो है पल इसी के लिए जीएँ हम
आगे तो मिलेंगे नित्य जीवन के झमेले
कल तो आएँगे छोटे बड़े दुखों के मेले
चलो बदल डालते हैं समय काल का विधान
बनाते हैं एक आयु इसी पल को खींच तान
16 अप्रैल 2007
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