रस्में
रस्में पुरानी ही सही, पाँव की
बेड़ियाँ ही सही
हो कर दूसरों के, रस्में निभाकर तो देखो
तुम्हारी थी दुनिया तुम्हारी ही
है दुनिया
हमें भी कभी दुनियादारी सिखा कर तो देखो
खुली हवा में साँस ले ली,
मेड़ों मे अठखेलियाँ कर ली
अब बंद है आशियाना, इसमें समा कर तो देखो
आदतें वही औ' लीक पर चल रही है
ज़िंदगी
कभी कदम से कदम मिला कर तो देखो
न चाँद हमारा, न चाँदनी हमारी
अनजान डगर पे चलना सिखा कर तो देखो
नैना लगा कर हारे, सपने संजोए
बैठे हैं
दौड़े आएँगे हम, बुला कर तो देखो
9 मई 2005
|