छाँव-निवासी
धूप की मंशाएँ भाँपकर
इधर-उधर, आगे-पीछे, दाएँ-बाएँ
जगह बदलते रहते
दरअसल
पेड़ से उन्हें कोई लगाव नहीं होता
बाज़ार
होना इफ़रात जगह
ढेर सारे असबाब के लिए
आदमी के लिए नहीं के बरोबर
घर में
पहाड़
आँधी तूफ़ान
वर्षा शीत घाम
हर हाल में सिर्फ़ वही रहे
अडिग अविचल
पाठ
जूतों के नीचे भी आ सकती है
दुर्लंघ्य पर्वत की मदांध चोटी
परंतु इसके लिए ज़रूरी है-
पहाड़ों के भूगोल से कहीं ज़्यादा
हौसलों का इतिहास पढ़ना
१ अप्रैल २००६
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