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क्षणिकाओं में
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पाठ

  बचे रहेंगे

नहीं चले जाएँगे समूचे
बचे रहेंगे कहीं न कहीं

बची रहती हैं दो-चार बालियाँ
पूरी फ़सल कट जाने के बावजूद
भारी-भरकम चट्टान के नीचे
बची होती हैं चींटियाँ
बचे रहेंगे ठीक उसी तरह

सूखे के बाद भी
रेत के गर्भ में थोड़ी-सी नमी
अटाटूट अँधियारेवाले जंगल में
आदिवासी के चकमक में आग

लकड़ी की ऐंठन कोयले में
टूटी हुई पत्तियों में पेड़ का पता
पंखों पर घायल चिडि़यों की क़शमक़श
मार डाले गए प्रेमियों के सपने ख़त में
बचा ही रह जाता है

९ फरवरी २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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