अनुभूति में डा.
हरीश सम्यक
की रचनाएँ- छोटी कविताओं
में-
चार छोटी कविताएँ
नयी रचनाओं में-
आनंद की अनुभूति
खुली छत पर
दोपहर
फूल तोड़ने से पहले
समय का आकर्षण
छंदमुक्त में-
आज भी
मैं की जिद
वादों के झगड़े
सड़क पर
सुबह का चेहरा |
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आनंद की अनुभूति
रस की मीमांसा और सिद्धान्त वादी
आचार्यो
आनन्द की अनुभूति पर जितने अनुभव
तुम लिख पाये
उन सबमें ही मेरी अनुभूति शामिल थी
कबीर ने तो इसे कुछ आसान करते हुए
गूँगे का गुड़ बताया और पल्ला झाड़ लिया
कि भाई इसमें बताने जैसा कुछ नहीं
मिटटी के कुल्हड़ में जमा दही
गर्मियों के प्रातः काल में
हरी घास की आभा
नींद से जगने के बाद भीतर का
क्षणिक मौन
कनेर के पीले फूलों का
खिला चेहरा
बारिश में धुलकर
खिले हुए पेड़ पौधों के रंग
चूल्हे में सिकती
फूलती रोटी का आकार
आँवले के पेड़ पर
नये चमकदार फल
एकांत के बगीचे में चुपचाप प्रेम
कच्चे आँगन पर छिड़काव से उठती महक
और न जाने कितने रिश्ते नातों की पुरानी कहानी
रस और ब्रह्म की
अंततः नेति-नेति पर समाप्त सीमाएँ
घर के बाहर जलाये गए प्लास्टिक कचरे की
घुटन में
कुछ अन्तिम उदाहरण बचे हैं।
१ नवंबर २०१६ |