अनुभूति में डा.
हरीश सम्यक
की रचनाएँ- छोटी कविताओं
में-
चार छोटी कविताएँ
नयी रचनाओं में-
आनंद की अनुभूति
खुली छत पर
दोपहर
फूल तोड़ने से पहले
समय का आकर्षण
छंदमुक्त में-
आज भी
मैं की जिद
वादों के झगड़े
सड़क पर
सुबह का चेहरा |
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आज भी
आज भी
वहाँ पेड़ छाया बुनते हैं
आज भी उनमें हवा
संगीत भरती है
एक बेंच वही पुराना
कई गरमाहटें लिए टिका है
उसकी चूलें कुछ जर्जरा गयी हैं
उसे तर्क के दीमक लग गए हैं
आज भी घास का कालीन
बाहें फैलाये
कुछ गुनगुनाने की कोशिश में है
अब उसे पैरों से ज्यादा
मशीन तराशती है
रास्तों पर अब भी प्रतीक्षाएँ
टकटकी लगाये बैठी है
अब लोग मिलते नहीं हैं
वे बैठे हुए भी भागते लगते हैं
लोग अब सयाने कहलाते हैं।
१५ फरवरी २०१६ |