अनुभूति में
बलदेव पांडे
की रचनाएँ-
अंतर्द्वन्द्व
अभिव्यक्ति
ऋषिकेश
एक और शाम
एक नई दिशा
गौरैया
पूरी रात की नींद
साँवली
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गौरैया
सुबह की ओंस बूँद-सी
टीक गई थी स्मृतिपटल पर,
साँसों में महसूसने लगा था उसे
अलसाई दोपहर की झपकी,
खोने लगा था
यादों की दुनिया में,
जहाँ अब खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा था,
सुबह से शाम तक
आँखें नहीं थकती थी
इंतजार में,
आज शब्द ही हैं
और कोई नहीं पास,
शब्द, मौन शब्द
तराश रहे हैं एक बुत.
यादों के पत्थरों से,
भर रहे हैं संवेदना के सुर
ठहरी हुई ज़िन्दगी में,
उसका आना,
पास बैठ जाना
सुकून देता था,
तस्दीक करता था वजूद का
शिवालिक की पहाड़ियों से छनती हुई हवा में
उसकी सुगंध महसूस हो रही है आज,
पास बैठी हुई एक अदृश्य आकृति
कोई अंधविश्वास नहीं,
भावनाओं का संगम
आँखे फिर टिकने लगी हैं
डाल पर डोलती गौरैया पर
२५ मई २००९ |