अनुभूति में
बलदेव पांडे
की रचनाएँ-
अंतर्द्वन्द्व
अभिव्यक्ति
ऋषिकेश
एक और शाम
एक नई दिशा
गौरैया
पूरी रात की नींद
साँवली
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अभिव्यक्ति
आज भी चाँद निकलता हैं,
तारे टिमटिमाते हैं,
अगर कुछ नहीं होता-
बाबुल के खिलौने नहीं मुसकाते,
तावे पर बनती रोटी-
और उसपर हक जतातीं आँखें,
बाज़ार से हलके लौटते झोले,
बाबा की खाँसी,
दादी की आँचल मे सूखते आँसू
मूक होकर भी वाचाल हैं,
सुबह की ताज़ी ख़बर
बलात्कार,
दंगे,
भुखमरी और
उनका जन्मदिन की बधाई संदेश
आज भी सबकुछ सामान्य हैं
सरसों का तेल और प्याज के भाव
सूरज रोज़ चमकता हैं,
बाज़ार सजते हैं
पर झोलों का पेट नहीं
२५ मई २००९ |