अनुभूति में
बलदेव पांडे
की रचनाएँ-
अंतर्द्वन्द्व
अभिव्यक्ति
ऋषिकेश
एक और शाम
एक नई दिशा
गौरैया
पूरी रात की नींद
साँवली
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एक नई दिशा
उसने देखा था एक सपना,
आँगन में खुशियाँ,
दालान में सुकून,
और आखों में चमक
उसे ठीक-ठीक याद नहीं कब नज़र लग गई थी,
देखते ही देखते तार-तार हो गए थे सपने
देखता ही रह गया था,
तबाही का वह मंजर
जहाँ धुआँ और राख के सिवा कुछ भी नहीं बचा था,
पथरीली आँखों में सपने ठहर गए थे
अंतस के फूल मुरझा गए थे,
वह मौन, अडिग पत्थर-सा
सोचने लगा था एक नया विकल्प,
एक नई ऊँचाई,
एक बड़ी चुनौती
एक नई दिशा
२५ मई २००९ |