अनुभूति में
बलदेव पांडे
की रचनाएँ-
अंतर्द्वन्द्व
अभिव्यक्ति
ऋषिकेश
एक और शाम
एक नई दिशा
गौरैया
पूरी रात की नींद
साँवली
|
|
एक और शाम
दीवारों से बातें करतीं आँखें,
टिक जातीं हैं उस मुन्डेरे पर
जहाँ गौरैया चहकती,
चींचीं करती है,
खोने लगती है आसमान के नीले आँचल में
मिट्टी की सौंधी खुशबू में उकरता बीज,
प्रसव पीड़ा,
एक परिवर्त्तन,
एक सबेरा
कस्बे के चौराहे पर खड़ा आदमी,
लालट पर पड़ती लकीरें
एक और शाम,
अवसान,
थमता हुआ कालचक्र,
लम्बी पसरती परछाई
और उसकी लम्बी गहरी साँसें
खो जाती हैं
अनजाने खोह में,
चुपके से
फिर वही सबेरा,
आपाधापी,
और थकान
एक और शाम का निमंत्रण
२५ मई २००९ |