अनुभूति में
बलदेव पांडे
की रचनाएँ-
अंतर्द्वन्द्व
अभिव्यक्ति
ऋषिकेश
एक और शाम
एक नई दिशा
गौरैया
पूरी रात की नींद
साँवली
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अंतर्द्वंद्व
छलकता आँसू
खुशी का आँसू बता दिया गया था,
अंतस में खिले फूल,
बौराया हुआ मन
पतझड़ से बेखौफ़,
भ्रम में ही भले
आज मस्त थे,
गोधूलि वेला का संक्रमण
मठ का बजता घंठा,
धुआँ उगलते चूल्हे
जीवटता के सूत्रमंत्र,
अधबुझी दीये से लक्ष्मी को आमंत्रण,
घुटन, संत्रास और चुप्पी
और कुछ नहीं खाद थे
अंतहीन खोखले सम्मान के,
भूत के आँचल में दम तोड़ता वर्त्तमान
दरवाज़े पर दस्तक देते हाथ,
परम्परा तोड़ते शब्द
नई दिशा की ओर बढते कदम
शांत,
गम्भीर और
अविचलित
ऊषा किरणों के पसराव में
खुलतीं आँखें
२५ मई २००९ |