अनुभूति में
अविनाश वाचस्पति की
रचनाएँ- नई
रचनाएँ
सड़क पर भागमभाग
पगडंडी की धार
मौसम से परेशान सब
आवाज आवाज है
कविताओं में
आराम
गरमी का दवा
जीना
पलक
पानी रे पानी
मज़ा
मैं अगर लीडर बनूँ तो
शहर में हैं सभी अंधे
साथ तुम्हारा कितना प्यारा
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सड़क पर भागमभाग
आधुनिकता का पर्याय
आज की जरूरत
कहीं नहीं जाती
पर मंजिल तक पहुँचाती
सफर में खतरा होता है
पर सड़क से नहीं
इस पर चलने वालों से
तेजी से दौड़ने वालों से
सरपट बेतहाशा भागने वालों से
जरूरी नहीं कि
अंधी दौड़ में शामिल सब
पैदल भाग रहे हों
अब पैदल का जमाना नहीं रहा
नया ही पहचाना गया
कोई साइकिल पर सवार है
कोई स्कूटर, कार, मोटर, ट्रक
बस पर सवार है
भाग रहा है आदमी
इन सब पर होकर सवार
बिना यह देखे कि
जिस सड़क पर वो भाग रहा है
उस पर जख्म भी हो सकते हैं
इन ज़ख़्मों से सड़क का नहीं
उस पर अंधाधुंध भागने वालों का ही
नुकसान होता है
यह भी जरूरी नहीं कि
वाहन ही टूटे
जिंदगी भी छूट सकती है
ज़ख़्मों से बच जाओगे
तो सामने आने वाले से भिड़ जाओगे
एक तरफ़ा यातायात हुआ तो
वाहन के ब्रेक भी फेल हो सकते हैं
पंचर भी हो सकता है
संभल गए तो ठीक
वरना जो आगे जा रहा है
उसे रौंद सकते हो तुम
परंतु तुम स्कूटर पर हुए
तो खुद ही भड़भड़ा जाओगे
और जिससे भिड़े
वो यदि ट्रक या कार हुई तो ?
तेजी से मंजिल की ओर बढ़ना
सदैव बुरा नहीं है लेकिन
सदैव भला भी नहीं है
कई बार की जल्दी
भयानक देरी बन जाती है
और मंजिल बदल जाती है
इसमें सड़क को दोषी मानेंगे
या वाहन को
खुद को
या दूसरे वाहन चालक को
पर इससे क्या होगा
भुगतेगा भुगतने वाला।
धैर्य में है सार बहुत
संभल कर चलो भाई
इसी में छिपी है भलाई
जो उपयोगी है
उसे तरीके से
जो अनुपयोगी है
उसे भी तरीके से
तरीका सलीका ही है
जो बेहद जरूरी है
एक दिन तो सबको मरना है
फिर जीकर हमको क्या करना है ?
1 दिसंबर 2007
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