आराम
इस बार छत से
छलांग लगाकर आत्महत्या
नहीं, बिल्कुल नहीं।
पिछली बार की थी कोशिश
पर बच गया
सिर भी नहीं फटा
सिर्फ़ पैर और हाथ की
एक-एक हड्डी टूटी थी
हाथ की को सत्तानवे दिन
पैर की को छह महीने लगे थे बनने में।
लेकिन छह महीने में भी
मैं दोबारा वो नहीं बन पाया
जो आत्महत्या करते वक्त
अनायास हो गया था।
सोच रहा हूँ
इस बार विषपान ही कर लूँ
पर मुझमें सुकरात जैसी हिम्मत कहाँ?
वैसे भी आला दरजे का डरपोक हूँ
इसीलिए तो अपनी हत्या करने की
असफल कोशिश करता हूँ
डरता हूँ
बच गया, पकड़ा गया
सबूत मिल गया
तो कहीं फाँसी न हो जाए?
अब सोचता हूँ कि किसी
ट्रेन, बस, ट्रक के आगे
कूद पड़ूँ
एक आश्चर्य की तरह
और कुचला जाऊँ
पर भरोसा नहीं है
उन पर भी
कहीं उनके ब्रेक काम न आ जाएँ
या छत से कूद कर मरने की
कोशिश करने की माफ़िक
एकाध हड्डी से महरूम हो जाऊँ
फिर बच जाऊँ मैं।
इस बार चाहे देर से मरूँगा
पर दो चार हडि्डयाँ तुड़ाकर
सब्र नहीं करूँगा
हडि्डयाँ तुड़ाकर जीने से तो
ऐसे ही जीना क्या बुरा है
बस इस जीने पर चढ़ना ही तो मना है।
ऐसे ही जीना है अब
हडि्डयाँ तुड़ाकर जीने से
साबुत हडि्डयों में आराम है।
आराम है!
इसी आराम की ख़ातिर
चाह रहा था मरना
वो तो बिना मरे ही
गया है मिल
आत्महत्या का
नैक्स्ट सेशन कैंसिल।
9 जुलाई 2007
|