अनुभूति में
अविनाश वाचस्पति की
रचनाएँ- नई
रचनाएँ
सड़क पर भागमभाग
पगडंडी की धार
मौसम से परेशान सब
आवाज आवाज है
कविताओं में
आराम
गरमी का दवा
जीना
पलक
पानी रे पानी
मज़ा
मैं अगर लीडर बनूँ तो
शहर में हैं सभी अंधे
साथ तुम्हारा कितना प्यारा
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आवाज आवाज है
कभी सोचा है आपने
गौर किया है
या मामूली सा भी ध्यान दिया है
कितनी आवाज़ों के बीच में
रहते हैं हम।
लगता है आपको
कोई आवाज नहीं सुनाई पड़ रही है
आप एक बार
अपने कानों में खो जाइए
फिर देखिए
कहीं दूर से किसी मशीन के
घड़घड़ कर चलने की आवाज
पास में ही बच्चों की आवाजें
पक्षी भी चहचहा रहे हैं कहीं
ट्रक के हॉर्न की तेज आवाज
किसी के चिल्लाने की तीखी आवाज
हवा भी सरसरा रही है
यहीं कहीं आसपास
कहीं रेडियो बज रहा है।
कई बार आवाज होती नहीं है
पर सुनाई पड़ जाती है
तब कान बजते हैं
मन में रिकार्ड रहती हैं जो आवाजें
वो सुनाई देने लग जाती हैं
आप पूछते हैं अपने साथी से
तुमने यह सुना ?
या तुम्हीं ने कुछ कहा ?
उसके मना करने पर
आप हैरान होते हैं
इसका साफ मतलब है
कि कान बजा।
आपने यह कैसे सोच लिया
कि रात में कोई
आवाज ही नहीं होती
सिर्फ सन्नाटा होता है
रात के समय सुनाई पड़ती हैं
दूर की आवाजें भी
बिल्कुल साफ
आप झींगुरों, तिलचट्टों
को भी सुन सकते हैं
और सुन सकते हैं
साँसों की भी आवाज।
आवाज तो हाथों से
भी आती है
ताली क्या ऐसे ही बज जाती है ?
जब चलते हैं चुपचाप
दबे कदम
तब न तो कदम दबे होते हैं
और न बेदम होते हैं
तब होती है पदचाप
उस पदचाप को आपके कान
नहीं सुन सकते
वो इतने संवेदी नहीं होते हैं
पर कहीं न कहीं तो
सुनी जा रही होती है
आपकी पदचाप।
आपको अब तो हुआ होगा
ध्वनि का अहसास
जब यही बहुत बढ़ जाता है
शोर कहलाता है
कर जाता है सीमा पार
लांघ जाता है हदें
तो कहलाता है
ध्वनि प्रदूषण।
इससे यह आभास भी
जगता है
सब कुछ मनुष्य की
मानसिकता पर निर्भर है।
1 दिसंबर 2007
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