अनुभूति में
विज्ञानव्रत
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
उनसे मिलने जाना है
दिल भी वो है
मेरे सपनों का किरदार
मैं हूँ तेरा नाम पता
या तो हमसे
अंजुमन में-
एक सवेरा साथ रहे
जैसे बाज़ परिंदों में
तनहा क्या करता
तपेगा जो
तुमने जो पथराव जिये
तेरा ही तो हिस्सा हूँ
बच्चे
मैं था तनहा
रस्ता तो इकतरफ़ा था |
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तनहा क्या करता
तनहा क्या करता बेचारा
उसको सबने मिलकर मारा
वो जिनको मक़रूज़ नहीं था
उसने उनका कर्ज़ उतारा
जीत के लौटा बाहर से तो
उसको उसके घर ने मारा
कब तक टिकता इस बस्ती में
बंजारा ठहरा बंजारा
सूरज,चांद बहुत कुछ लेकिन
भोर का तारा भोर का तारा!
१४ फरवरी २०११
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