जैसे बाज
परिंदों में
जैसे बाज़ परिंदों में
मेरा क़ातिल अपनों में।
अब इंसानी रिश्ते हैं
सिर्फ़ कहानी-किस्सों में।
पढ़ना-लिखना सीखा तो
अब हूँ बंद किताबों में।
मौसम को महसूस करूँ
ख़बरों से अखबारों में।
मेरे पैर ज़मीं पर हैं
खुद हूँ चाँद-सितारों में।
२८ सितंबर २००९
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