अनुभूति में
सतीश कौशिक
की रचनाएँ-
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अब शहर की हर फिजा
किसी के ख्वाब में
रेहन हुए सपने भी
सोचों को शब्द
अंजुमन में-
आ गजल कोई लिखें
दर-बदर ख़ानाबदोशों को
फिर हवा आई
सच को जिसने
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सोचों को शब्द
सोचों को शब्द देने से डरते रहे हैं हम
ख़ामोश हर गली से गुज़रते रहे हैं हम
हम कंठ फाड़-फाड़ कर चिल्ला नहीं सके
ख़ामोशियों का दंड हाँ भरते रहे हैं हम
लोगों ने आइनों की वो दीवार खड़ी की
बनकर महज़ अक्स उभरते रहे हैं हम
माना कि तेरी बज़्म में ये ज़ुर्म था मगर
फिर भी वफ़ा का ज़िक्र तो करते रहे हैं हम
जब भी हमारे हाथ उठे आसमान में
होकर लहू सड़क पे बिखरते रहे हैं हम
१७ सितंबर २०१२
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