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अनुभूति में सतीश कौशिक की रचनाएँ-

नई रचनाओं में
अब शहर की हर फिजा
किसी के ख्वाब में
रेहन हुए सपने भी
सोचों को शब्द

अंजुमन में-
आ गजल कोई लिखें
दर-बदर ख़ानाबदोशों को
फिर हवा आई
सच को जिसने

 

फिर हवा आई

फिर हवा आई नदी के पार की
याद आई नाव की, पतवार की

उँगलियाँ फिर रेत में चलने लगीं
फिर लगीं लिखने इबारत प्यार की

धूप सारा दिन डरी-सहमी रही
सुर्खियाँ पढ़कर सुबह अख़बार की

वक़्त ने धुँधला दिए हैं आइने
शक्ल या धुँधला गई गुलनार की

क्या करें कुछ रास आती ही नहीं
जी-हुज़ूरी आपके दरबार की

इस नई तहज़ीब के बाज़ार में
बात कर बारूद की हथियार की

९ जनवरी २०१२

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