अनुभूति में
सतीश कौशिक
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में
अब शहर की हर फिजा
किसी के ख्वाब में
रेहन हुए सपने भी
सोचों को शब्द
अंजुमन में-
आ गजल कोई लिखें
दर-बदर ख़ानाबदोशों को
फिर हवा आई
सच को जिसने
|
|
दर बदर खानाबदोशों को
दर-बदर
ख़ानाबदोशों को ठिकाना चाहिए
बेघरों के वास्ते भी घर बनाना चाहिए
रोज़ हमको आज़माती ही रही है ज़िन्दगी
ज़िन्दगी को भी हमें अब आज़माना चाहिए
साँस लेना ही फ़क़त क्या ज़िन्दगी है दोस्तो
ज़िन्दगी जीने का कोई तो बहाना चाहिए
क़त्लगाहों से जुड़े हैं इस नगर के राजपथ
इस नगर का फिर नया नक्शा बनाना चाहिए
आसमाँ से कल चमन के नाम ये फ़रमान था
बिजलियों के वास्ते इक आशियाना चाहिए
९ जनवरी २०१२
|