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अनुभूति में सतीश कौशिक की रचनाएँ-

नई रचनाओं में
अब शहर की हर फिजा
किसी के ख्वाब में
रेहन हुए सपने भी
सोचों को शब्द

अंजुमन में-
आ गजल कोई लिखें
दर-बदर ख़ानाबदोशों को
फिर हवा आई
सच को जिसने

 

रहन हुए सपने सभी

रहन हुए सपने सभी साँसें हुईं ग़ुलाम
थकी-थकी सी ज़िन्दगी ढूँढ़ रही आराम

आँसू आहें विकलता ज़हर-बुझे से बोल
मिले ज़िन्दगी को कई अनचाहे ईनाम

किसका कितना शेष है कितना दिया चुकाय
यूँ ही कटी हिसाब में अपनी उम्र तमाम

जाने कैसी लगन थी कैसा था अनुराग
मन वनवासी हो गया कर सब कुछ नीलाम

यूँ तो गाथा प्रेम की होती कभी न पूर्ण
ठीक किया जो आपने खींचा पूर्ण-विराम

काजल सन काला हुआ लाल चुनर का छोर
वो भी रोए रात भर ख़ुद का दामन थाम

१७ सितंबर २०१२

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