अनुभूति में
डॉ मनोज श्रीवास्तव की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
भीड़ का हिस्सा रहा तब
लम्हे-लम्हे पर
सब
सियासी चाल हैं
साज़िश
फँसकर रह जाएगी
सूरज भी
मेरी गोद में
छंदमुक्त में-
अतीत
क्रिकेट का हवाओं के साथ खिलवाड़
स्वस्थ धुओं का सुख
अंजुमन में-
दिल्लगी
पत्थरों सा दिल
बिखरे हैं जो कचरे
मेरे गीतों
में
|
|
सब सियासी चाल हैं
ये मुसलमाँ, वो ईसाई सब सियासी चाल हैं
पेड़ ये है हिंद का, हम पत्तियों की डाल हैं
अस्मिता के नाम पर डाइन सियासत चल रही
क्यूँ नहीं लगता हमें, हम अम्न की सुर-ताल हैं
हमसे जो करवा रहा है तिकड़मी उन्माद है
ख़ूँ बहाना कुफ़्र कर, ये दोगली-सी चाल हैं
इश्तेहारों में मुकम्मल नाम जो अपना लिखा
लिखने वालों ने पहन ली भेड़ियों की खाल हैं
जिनके कदमों के निशां पर चल रहे दिन-रात हैं
वो अँधेरों में बिछाए सब फ़रेबी जाल हैं
उन किताबों को जला दो, कर्मवीरों हिंद के
जिनमें लिक्खा, हम सभी ज़ेहाद के बेताल हैं
११ नवंबर २०१३ |